Monday 29 October, 2007

स्कूल के दो दोस्त - एक बना कानून का रखवाला दूसरा अंडरवर्ल्ड डॉन

मुंबई अंडरवर्लड के सबसे बडे डॉन दाऊद इब्राहिम को उसी के एक सहपाठी ने नाकों चने चबवाये। मुंबई के उर्दू मीडियम स्कूल में दाऊद ने करीब 6 साल तक उसके साथ पढाई की थी।मैट्रिक पास करने के बाद दाऊद ने गुनाह की राह पकडी, जबकि उसके सहपाठी कादर खान ने पुलिस में अपना करियर बनाया। इंस्पेक्टर कादर खान से बातचीत की जीतेन्द्र दीक्षित ने – एक रिपोर्ट - हम मिले दाऊद के सहपाठी से जो अब भी पुलिस महकमें में है और दाऊद के सबसे बडे दुश्मनों में से एक है।उसने हमें बताया दाऊद के बचपन के दिनों से जुडी कई सारी बातें, जो इस डॉन का एक अलग ही चेहरा पेश करतीं हैं। हम दाऊद के टीचर से भी मिलें और उन्होने जो बातें हमें बताईं उसे सुनकर आप सोचेंगे कि क्या ये वही शख्स है, जिसे आज दुनिया के सबसे खतरनाक आदमियों में गिना जाता है।उन्होने साथ साथ पढाई की, टीचर की डांट खाई, खेले कूदे, लेकिन आज वे है एक दूसरे के जानी दुश्मन। ये कहानी है अंडरवर्लड डॉन दाऊद इब्राहिम और स्कूली दिनों में उसके साथी कादर खान की। जहां दाऊद आज गुनाह की दुनिया में बहुत बडा नाम बन चुका है, वहीं कादर खान मुंबई पुलिस में एक सीनियर इंस्पेक्टर है। वैसे मुंबई पुलिस में डी कंपनी के तमाम दुश्मन हैं, लेकिन कादर खान एक ऐसा इंस्पेक्टर है, जिसे दाऊद शायद ही भूल पाये।अंडरवर्लड के खूनी खेल में पुलिस और दुश्मन गिरोहों से निपटने के लिये दाऊद इब्राहिम ने शूटरों की फौज खडी कर रखी थी और इन्ही शूटरों के ट्रेनिंग देने के लिये उसने नियुक्त किया था खुद पुलिस का ही एक आदमी और वो भी पुलिस का एक ऐसा आदमी जो मुंबई पुलिस के हथियार खाने में काम करता था और तमाम तरह के हथियार चलाना जानता था।सीनियर इंस्पेक्टर कादर खान। मुंबई के वडाला पुलिस थाने के इचार्ज। पुलिस महकमें में अपने करियर के दौरान इन्होने कई अपराधों की गुत्थियां सुलझाईं हैं और इनके काम के लिये इन्हें राष्ट्रपति पदक भी मिल चुका है। पर कादर खान की मुंबई पुलिस में एक और पहचान भी है। ये पहचान है अंडरवर्लड डॉन दाऊद इब्राहिम के सहपाठी के रूप में। दाऊद के साथ दक्षिण मुंबई के अहमद सेलर स्कूल में इन्होने 6 साल तक पढाई की...पर पुलिस महकमें में मौजूद अपने इस पुराने साथी से दाऊद कोई फायदा नहीं उठा सका। उलटा कादर खान ने दाऊद गिरोह के शूटरों को ट्रेनिंग देने वाले अपने ही महकमें के एक कांस्टेबल को खत्म कर दाऊद को एक करारा झटका दिया। दाऊद के लिये काम करने वाला ये कांस्टेबल था राजेश इगवे उर्फ राजू।अंडरवर्लड के खूनी खेल में पुलिस और दुश्मन गिरोहों से निपटने के लिये दाऊद इब्राहिम ने शूटरों की फौज खडी कर रखी थी और इन्ही शूटरों के ट्रेनिंग देने के लिये उसने नियुक्त किया था खुद पुलिस का ही एक आदमी और वो भी पुलिस का एक ऐसा आदमी जो मुंबई पुलिस के हथियार खाने में काम करता था और तमाम तरह के हथियार चलाना जानता था।-जी हां राजू की पोस्टिंग मुंबई पुलिस के हथियार खाने में की गई थी। कहने को तो राजू एक पुलिस वाला था, लेकिन उसकी खाकी वर्दी के पीछे छुपा था एक खतरनाक अपराधी। पुलिस की नौकरी से मिलने वाला साधारण वेतन इगवे की अय्यशियों को पूरा सकरने के लिये कम पडता था। शराब और शबाब के शौकीन इगवे को चाहिये थी ऊपरी कमाई और उसकी इसी कमजोरी का फायदा उठाया दाऊद इब्राहिम ने। दाऊद जानता था कि राजू को पिस्तौल और रिवॉल्वर से लेकर राईफल, मशीन गन और एके 47 जैसे तमाम अत्याधुनिक हथियार चलाने आते हैं। दाऊद के लिये ये आदमी बडे काम का था। 1991 में दाऊद का एक शूटर माया डोलस मुंबई के लोखंडवाला इलाके में पुलिस एनकाउंटर में मारा गया था। दाऊद चाहता था कि उसके शूटर दुश्मन गिरोह के शूटरों को तो ठिकाने लगाने में सक्षम हों हीं, जरूरत पडने पर पुलिस वालों पर भी गोलियां बरसाने के काबिल हों। इसी इरादे से मोटी रकम पर उसने राजू इगवे की भर्ती कर ली। इगवे को जिम्मेदारी दी गई डी कंपनी के शूटरों को हथियार चलाने की ट्रेनिंग देने की।इस काम के लिये उसने जगह चुनी संजय गांधी नेशनल पार्क के जंगलों को।जिस दौरान राजू इगवे, दाऊद के शूटरों को ट्रेनिंग दे रहा था, उस वक्त कादर खान मुंबई पुलिस की क्राईम ब्रांच में थे। कादर खान मुंबई के उसी नागपाडा इलाके में पले बढे थे, जहां दाऊद का बचपन बीता और जहां से दाऊद उस वक्त भी अपनी आपराधिक गतिविधियां चला रहा था।कादर खान को दाऊद के इस नये ट्रेनर के बारे में पता चला और वे उसके पीछे लग गये। इसी दौरान खान को टिप मिली कि राजू इगवे से दाऊद सिर्फ ट्रेनिंग ही नहीं करवा रहा है, बल्कि उसे दाऊद ने एक बडा मिशन भी सौंप रखा था। ये मिशन था 3 लोगों की हत्या का। ये तीनो लोग थे शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे और 1993 के मुंबई बमकांड की तहकीकात कर रहे अफसर एम एन सिंह और राकेश मारिया।...पर इससे पहले कि इगवे अपने इस मिशन में कामियाब हो पता वो कादर खान के जाल में फंस गया। 17 नवंबर 1995 में को एक मुठभेड में कादर खान की रिवॉल्वर से निकली गोलियों ने इगवे को छलनी कर दिया।भले ही कादर खान ने दाऊद गिरोह का भारी नुकसान किया हो, लेकिन दाऊद का सहपाठी होना वे अपने लिये एक कलंक मानते हैं। उनके मुताबिक दाऊद का सहपाठी होने की वजह से उन्हे हमेशा शक की नजरों से देखा जाता रहा और कभी कोई संवेदनशील पोस्टिंग नहीं दी गई।वैसे तो दाऊद के सैकडों शूटरों को मुंबई पुलिस के एनकाउंटर स्पेशलिस्ट अफसर एनकाउंटर्स में ढेर कर चुके हैं, लेकिन दाऊद ने शायद ही सोचा हो कि खुद उसका एक सहपाठी गुनाह की राह में उसके लिये कांटा बनकर उभरेगा।

Sunday 28 October, 2007

कम उम्र की लड़की की मर्जी से सेक्स करना बलात्कार माना जायेगा

लड़कियों की रक्षा के लिये ठोस कदम उठाते हुये, देश के उच्चतम न्यायलय ने कहा है कि 16 साल से कम उम्र की लड़की के साथ उसकी मर्जी से भी सेक्स करना बलात्कार की श्रेणी में आएगा। यदि आप जोर जबरदस्ती के अलावा किसी ऐसी लड़की से प्यार करते हैं और उसकी उम्र 16 साल से कम है और उसके साथ सेक्स करते हैं, भले हीं उसमें लड़की की भी मर्जी हो तो भी आपको बलात्कार के मामले में सजा काटना होगा। इसके अलावा न्यायलय ने एक व्यवस्था और दी है कि किसी व्यक्ति को वेश्यावृत्ति में धकेलने का दोषी तभी माना जाएगा जब वह खुद शारीरिक संबंध न बनाकर लड़की को किसी दूसरे व्यक्ति से शारीरिक संबंध बनाने को मजबूर करता है। और यह मामला आईपीसी की धारा 366 ए के तहत आयेगा। यह मामला जुडा है केरल से जहां एक आरोपी को नाबालिग लड़की से बलात्कार के आरोप में केरल के सेशन कोर्ट ने 3 साल की सजा सुनाई थी।उल्लेखनीय है कि वह लड़की अपनी मर्जी से आरोपी लड़के के साथ फरार हुई थी। लेकिन वहां की निचली अदालत ने बलात्कार के साथ ही उसे वेश्यावृत्ति में धकेलने का दोषी भी पाया था। जबकि सुप्रीम कोर्ट ने उसे सिर्फ बलात्कार का दोषी पाया। लड़की उम्र 16 साल से कम थी।

Friday 26 October, 2007

दंगे ने मानवता हीं खत्म कर दी

राजेश कुमार
तहलका पत्निका और आज तक टीवी चैनल ने एक स्टिंग ऑपरेशन के तहत गुजरात दंगे के बारे में जो दिखाया उसे हर कोई जानता है लेकिन सबूत किसी के पास नहीं था लेकिन टीवी चैनल आजतक में दिखाये जाने के बाद सभी लोगों के लिये यह बहस का मुद्दा बन गया है। भारतीय जनता पार्टी सिर्फ यही रट लगा रही है कि तहलका भाजपा के खिलाफ है इसलिये स्टिंग ऑपरेशन की गई है। कॉग्रेस के खिलाफ तहलका कोई ऑपरेशन क्यों नही करती ? हालांकि तहलका के संपादक तरुण तेजपाल ने कहा है कि उन्होने कॉग्रेस के खिलाफ कितने स्टिंग किये हैं ये सभी जानते हैं। यहां सवाल यह नहीं है कि कौन किसके के खिलाफ है। यहां इस विषय पर बहस होनी चाहिये थी कि गुजरात दंगे को मोदी सरकार ने जिस तरह से बढावा दिया और एक खास समुदाय के लोगो की हत्या करवाई क्या वह सही था? दंगे की सारी राम कहानी किसी दूसरे दल के लोगों ने नहीं बताई बल्कि उन्हीं के पार्टी के लोगों ने ही सब कुछ बताया।उसमें भी वे लोग जो खुद क्रूर घटना को अंजाम दिया। कुछ लोग गुजरात दंगे को गोधरा घटना की प्रतिक्रिया बता रहें है। तो उनसे पहला सवाल यही है कि मुंबई में जो दंगे हुये 1992-93 में उसी की प्रतिक्रिया थी 93 का मुंबई विस्फोट, तो क्या मुंबई विस्फोट को सही ठहराया जा सकता है – नहीं। उसी प्रकार गुजरात दंगे को सही नहीं ठहराया जा सकता। किसी का खून बहाना या क्रूर अत्याचार करना किसी धर्म का हिस्सा नहीं हो सकता।बहरहाल सभी जानते हैं कि चुनाव का समय है राजनीतिक सीडी जारी होते रहेंगे और जिसके खिलाफ स्टिंग होगा वह सच्चाई को ढकने के लिये अपने दुश्मनों का गेम प्लान बतायेंगे।

कहीं ये टीवी पत्रकारिता का कलंक न बन जाये।

जीतेंद्र दीक्षित पत्रकारिता जगत में पिछले 12 साल से कार्यरत हैं। आजतक – तहलका ने जो स्टिंग ऑपरेशन में गुजरात के दंगो को दिखाया उससे वे सहमत नहीं हैं। उनका मानना है कि गुजरात दंगे का अर्ध सच ही दिखाया गया है। एक रिपोर्ट - इस हफ्ते के तहलका का तहलका खूब चर्चित हुआ। गुरूवार की शाम जब आज तक न्यूज चैनल ने गुजरात दंगों पर तहलका के साथ मिलकर अपना स्टिंग ऑपरेशन दिखाया तो हर कोई टीवी से चिपका दिखा। ये जानकर अच्छा लगा कि बडे दिनों बाद कोई हिंदी न्यूज चैनल राखी सावंत, नाग नागिन या अंधविश्वास से हटकर कोई गंभीर खबर दिखा रहा था। राजनेता, पत्रकार , व्यापारी हर कोई इस खुलासे को देखकर अचंभित था। गुजरात के दंगों का ये सच काफी घिनौना और डरावना था। एक हिंदुत्ववादी नेता बडी बहादुरी जताते हुए गर्भवती महिला की हत्या कबूल कर रहा था, दूसरा बूढे मुसलिम सांसद और उसकी पनाह में आये लोगों की हत्या को बहादुरी मान रहा था। तीसरे ने उगला कि किस तरह से पुलिस और मंत्री दंगाईयों का समर्थन कर रहे थे। जो भी सुनाई और दिखाई दे रहा था, उसने दहला कर रख दिया। मरने वालों के लिये कोई नहीं था, न पुलिस, न सरकार और न नेता। वे तस्वीरें लोकतंत्र का मजाक तो थीं हीं, इंसानियत का भी मखौल उडा रहीं थीं। जो भी दिखाया गया वो काफी शर्मनाक था।
इस स्टिंग ऑपरेशन को अंजाम देने वाले तहलका के पत्रकार आशीष खेतान मेरे अच्छे दोस्त हैं। जिन दिनों वे मुंबई मिरर के लिये मुंबई में काम करते थे तो हमारी अक्सर मुलाकात होती थी। मुंबई से दिल्ली जाने पर भी वे लगातार मेरे संपर्क में थे। इस ऑपरेशन को उन्होने जिस हिम्मत, सूझबूझ और रोचक तरीके से अंजाम दिया, मै उसकी दाद देता हूं। स्टिंग ऑपरेशन के दौरान कई तरह के जोखिम होते हैं, लेकिन खेतान ने इन जोखिमों की परवाह किये बिना ऑपरेशन कलंक को सफलतापूर्वक अंजाम दिया। मैं इस ऑपरेशन को टीवी पत्रकारिता की एक बडी उपलब्धि मानने वाला था, लेकिन थोडी गहराई से सोचने पर निष्कर्ष निकला कि ऐसा नहीं है।
ऑपरेशन कलंक को आज तक ने गुजरात के दंगों का सच के तौर पर प्रचारित किया, पर मैं इससे सहमत नहीं हूं। जो भी आज तक ने दिखाया वो अधूरा सच था और आधा सच कई बार झूठ से भी ज्यादा खतरनाक होता है। इस बात में मुझे शक की कोई गुजाईश नहीं लगती कि तहलका ने जिन लोगों के वीडियो पर बयान दिखाये उनमें किसी तरह की छेडखानी की गई होगी, या उन्हे तोड मरोड कर पेश किया गया होगा। तमाम बयानों को देखने के बाद ये निष्कर्ष भी गलत नहीं है कि नरेंद्र मोदी की गुजरात सरकार ने दंगाईयों को खुली छूट दे रखी थी और उन्हें बचाने की भी कोशिश की। मेरी शंका इससे अलग है। मेरा सवाल सिर्फ इतना है कि ऑपरेशन कलंक में सिर्फ ऐसे दंगाईयों को ही क्यों नंगा करने के लिये चुना गया जिन्होने मुसलिमों पर हमले किये, वे ही लोग क्यों निशाने पर थे जिन पर गोधरा नरसंहार के बाद हुए दंगों में शामिल होने का आरोप है। ऐसे लोगों को बिलकुल नंगा किया जाना चाहिये था। मानवाता के दुश्मन हैं ये...लेकिन तहलका वालों क्या आप उन लोगों के बारे में क्या कहेंगे जिन्होने गोधरा में रेल मुसाफिरों को जिंदा फूंक दिया। साबरमती एक्सप्रेस के डिब्बा नंबर एस-6 में कुल 58 लोगों को जिंदा जला दिया गया था, जिनमें 15 महिलायें और 20 बच्चे भी थे। हिंदू दंगाईयों की तरह गोधरा की ट्रेन में आग लगाने वाले भी अपने बचाव में तरह-तरह के तर्क और कहानियां पेश कर रहे हैं। उनपर तहलका को शक क्यों नहीं हुआ। उनकी सच्चाई जानने की कोशिश क्यों नहीं हुई। ट्रेन में आग लगाने वालों से भी कैमरे के सामने उनका इकबाल-ए-जुर्म क्यों नहीं कराया गया।
मेरा तो ये मानना है कि गोधरा में नरसंहार का मामला किसी भी खोजी पत्रकार के लिये अपनी काबिलियत तो जांचने का अच्छा मौका देता है। इस मामले में कई ऐसे उलझे हुए सवाल हैं, जिनके जवाब ढूढे जाने बाकी हैं। गुजरात पुलिस की विशेष टीम ने इस नरसंहार को मुसलिम अपराधियों की एक सुनियोजित साजिश बताया था। रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव की ओर से गठित किये गये बैनर्जी पैनल के मुताबिक साबरमती एक्सप्रेस के डिबबे में आग लगाई ही नहीं गई, बल्कि ये तो एक दुर्घटना थी। गुजरात हाईकोर्ट ने बाद में पैनल की रिपोर्ट को नकारते हुए उसे गैरकानूनी और असंवैधानिक घोषित किया। कई और जांचे भी इस मामले में चल रहीं हैं, पर तहलका ने इस घटना के बजाय उसके बाद गुजरात में हुई प्रतिक्रिया को ही अपनी तहकीकात के दायरे में शामिल किया।
तहलका को शाबाशी तब दी जा सकती थी जब लो अपनी जांच के दायरे को बढाकर उसमें पूर्णता लाता, न केवल दंगों बल्कि दंगों का कारण बने गोधरा कांड के दोषियों को भी नंगाकर लोगों को बताता कि देखो इंसान दो अलग अलग धर्मों के बीच बंटकर किस तरह से हैवान बन गया था। ये बताता कि दंगाई चाहे हिंदू हो या मुसलमान उनके बीच नफरत और हैवानियत एक समान थी। ऐसा न करके तहलका ने आधा सच पेश किया है और उसके इस प्रयास को मैं सांप्रदायिकता के खिलाफ भरोसेमंद प्रयास नहीं मानता।
दूसरा सवाल जुडा है इस ऑपरेशन को दिखाये जाने के वक्त से। गुजरात में विधानसभा चुनावों के महीनेभर पहले इस ऑपरेशन को दिखाये जाने से ऑपरेशन की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठ रहे हैं। बीजेपी और नरेंद्र मोदी को ये कहकर अपना बचाव करने का मौका मिल गया है कि ये ऑपरेशन राजनीति से प्रेरित है और बीजेपी को गुजरात की सत्ता से हटाने की एक साजिश है। मैं न तो बीजेपी का समर्थक हूं और न ही आर एस एस, वी एच पी या बजरंग दल का। ऐसे तमाम संगठनों को मैं इंसानियत के दुश्मन और हिंदुत्व के नाम पर दुकान चलानो वालों की तरह देखता हूं, लेकिन इतना जरूर है कि जब तमाम एनजीओ, स्वयंभू समाजसेवी और मीडिया में हावी तथाकथित सेकुलर लोगों को एकतरफा अभियान चलाते देखता हूं तो बैचैनी होती है।
एक सवाल ये भी है कि एक ओर जब देश का माहौल दिन ब दिन बिगड रहा है तो इस तरह के संवेदनशील ऑपरेशन को दिखाया जाना कितना जायज है। गुजरात के गुनहगारों पर दुनियाभर की नजर है और उनके खिलाफ न्यायिक प्रक्रिया अभी चल ही रही है। न्यायपालिका पर से भरोसा अभी उठा नहीं है। गुजरात दंगों का ही बेस्ट बेकरी मामला इसकी मिसाल है। मामले की मुख्य चश्मदीद गवाह जाहिरा शेख के बार बार अपने बयान बदलने और तमाम नाटकीय घटनाक्रमों के बावजूद इस कांड के दोषियों को सजा मिली है। ऐसे में इस ऑपरेशन को दिखा कर क्या हासिल होगा ये साफ नहीं हो पा रहा। उलटे चिंता ये हो रही है कि कहीं इस ऑपरेशन के बहाने सांप्रदायिक तत्व फिर एक बार अपना उल्लू सीधा करने में न लग जायें। पता नहीं इस ऑपरेशन की सीडी की कितनी प्रतियां आतंकी संगठन खाडी देशों से फंड जमा करने के मकसद से बनाईं जायेंगीं, ट्रेनिंग कैंपों और कट्टरपंथियों के अड्डों पर मुसलिम युवाओं को भडकाने और दहशतगर्दी का रास्ता अख्तियार करने में इनका कितना इस्तेमाल होगा। हाल में देश के अलग अलग हिस्सों से पकडे आतंकियों के पास से गुजरात दंगों की खौफनाक तस्वीरों वाली कई सीडी बरामद हुईं हैं। ऑपरेशन कलंक की सामग्री तो उनसे भी ज्यादा विस्फोटक है। बेगुनाहों की जान लेने का इरादा रखने वाले न जाने कितने आतंकवादी और फिदायीन ऑपरेशन कलंक को देख कर अपने अमानवीय मकसदों को जायज मानेंगे।
मेरी चिंता यही है कि ऑपरेशन कलंक कहीं टीवी पत्रकारिता के लिये ही कलंक न बन जाये।

Thursday 25 October, 2007

दाऊद ईब्राहिम के खिलाफ दाऊद फणसे का बयान

जीतेंद्र दीक्षित
बमकांड के मामले में दाऊद इब्राहिम की भूमिका का सबसे तगडा सबूत है लैंडिंग एजेंट दाऊद फणसे उर्फ टकले का का बयान। इस बयान में टकले ने दुबई में दाऊद और टाईगर के साथ हुई मीटिंग का ब्यौरा दिया और बताया कि किस तरह से वापस भारत लौटने के बाद उसने दाऊद के हुक्म के मुताबिक कोंकण में मौत का सामान उतरवाया। हथियारों और विस्फोटकों की लैंडिंग के दौरान टाईगर मेमन भी मौजूद था। टकला, टाईगर मेमन का लैंडिंग एजेंट था। लैंडिंग एजेंट होने का मतलब है कस्टम और पुलिस के उन तमाम लोगों से तालमेल रखना जिनसे की तस्करी में मदद मिलती है। टकले ने हथियार और विस्फोटको को उतरवाते वक्त भी इनका बखूबी इस्तेमाल किया और इस आरोप में ये कस्टम और पुलिस के अफसर दोषी भी ठहराये गये। यहां तक कि टकले का बेटा सरफराज फणसे भी लैंडिग के मामले में दोषी करार दिया गया।
मुंबई पुलिस के हाथों गिरफ्तारी के बाद दिये गये इकबालिया बयान में टकले ने अपनी, टाईगर मेमन, कस्टम और पुलिस अफसरों की भूमिका भी उगली है। गिरफ्तारी के वक्त टकले की उम्र 60 साल की थी। टकले ने अपने बयान में बताया कि जनवरी 1993 के आखिरी हफ्ते में दुबई से लौटने के 5-6 दिन बाद मैने अपने दोनो पार्टनर रहीम और दादभाई उर्फ शरीफ परकार को दाऊद इब्रराहिम के काम की बात कही तो दोनो ने मंजूरी दे दी। फिर जनवरी के आखिर के लगभग शफी ने मेरे को बताया कि माल आने वाला है तो मै इंतजार करके उन लोगों के साथ लगातार 3 दिन एकलैंडिंग स्पॉट(शेखाडी) गये, लेकिन माल आवने का इंतजाम नहीं हुआ तो मै वापस आ गया। फिर 3 फरवरी की सुबह को रहीम ने बताया कि दादाभाई का फोन आया था कि आज शाम को लैंडिग होनेवाली है। फिर मैने मसला के कस्टम अफसर कदम और नवलकर से बात की और पहले से तय की गई रकम 1 लाख 60 हजार रूपये आपको काम होने के बाद मिल जायेगी ऐसा कहने पर दोनो ने कहा कि ठीक है। तुम अपना काम करो। तुम्हे कोई तकलीफ नहीं होगी। फिर शाम को मैं रिक्शा में बैठकर लैंडिंग की जगह पर इकबाल के साथ पहुंचा।वहीं पर रहीम लांड्रीवाला, निसार, अब्बास, शाहजहां, मुजम्मिल समेत कई लोग हाजिर थे। रात के करीब 10 बजे टाईगर अपने आदमी अनवर, परवेज और 20-25 दूसरे लोगों के साथ वहां पर पहुंचा। टाईगर के साथ 8-10 लोगों ने बाहर पिस्तौल लगा रखी थी।टाईगर और अनवर, रहीम और मेरी तरफ आये। टाईगर ने रहीम से पूछा कि पानी के अंदर कोई ट्रॉलर भेजा या नहीं तो रहीम ने इशारा करके बताया कि वो अक बत्ती वाला ट्रॉलर अपना है। इतने में हमारे एक लडके ने आकर बताया कि कस्टम के लोग आये हैं। मैने देखा कि रोड की तरफ कस्टम इंस्पेक्टर तलवडेकर और गुरव खडे हैं। मैने टाईगर को उनसे जाकर बात करने को कहा। टाईगर ने ुनसे जाकर बात की और 15-20 मिनट बाद टाईगर वापस आ गया। इतने में पानी के अंदर बत्तीवाला ट्रॉलर बत्ती बुझाकर आया और बोला कि बॉम्बे वालों को अंदर बुलाया है। टाईगर और उसके साथ 5-7 लोग जलजी से अंदर जाकर ट्रॉलर पर चढ गये। मैने पहले से चय प्लान के मुताबिक खलील और इकबाल को बोरली से राशिद के ट्रक लाने को भेज दिया। इतने में रहीम ने भी माल उतरवाने के लिये गांव से 35-40 लडके जमा कर लिये। मैं और रहीम वापस किनारे पर आकर खडे हो गये। उसके लगभग आधे घंटे बाद एक ट्रॉलर किनारे पर आया और उसमें से टाईगर और उसके आदमी जलदी जलदी उतरकर किनारे पर आये। उन सबकी पीठ पर एक-दो भरे हुए बैग लटके थे। सब लोगों को टाईगर ने सडक के रास्ते ऊपर भेजा ऐर खुद अपने बैग के साथ पास की एक झोपडी में गया। खट खट की आवाज आने पर जब मैने वहां जाकर देखा तो पाया कि टाईगर अपने साथ के 3-4 लोगों को बंदूकें दे रहा था। इसके बाद उसने सबकी किनारे पर फील्डिंग लगाई। थोडी देर बाद दूसरा ट्रॉलर अंदर से सामान लेकर आया और रहीम ने गांव से जिन लोगों को बुलाया था उनसे माल उतरवाना शुरू हुआ। माल को किनारे लाकर रखने पर मैने देखा कि बोरियों में कुछ बक्सानुमा लिपटा है। इतने में खलील और इकबाल ट्रक लेकर आ गये और सारा सामान ट्रक में चठा दिया गया। इतने में दूसरा ट्रॉलर भी वैसा ही सामान लेकर किनारे पर आया और उस सामान को भी ट्रक पर चढा दिया गया। टाईगर ने बंदबक वाले 2-3 लडकों को पीछे ट्रक पर रखे सामान के पास बिठाया और कुछ लोगों को लकेर टाईगर अपनी जिप्सी में बैठा। मैं भी टाईगर के साथ जिप्सी में बैठा। कुछ देर बाद हम सब वांगणी गांव के पास टीवी टॉवर पर पहुंचे। टाईगर ने अपने आदमियों के अलावा हम सभी को बाहर ठहरने के लिये कहा। वाचमैन ने टाईगर को नीचे भेज दिया। हम सभी एक साईड में बैठ गये। टाईगर के लोगों ने ट्रक पर से सारा सामान नीचे उतारा। थोडी देर बाद टाईगर ने हमें आवाज दी। उसने खाली किये गये बक्सों को बाहर ले जाकर जलाने को कहा। हम जब अंदर गये तो हमने देखा कि टाईगर के आदमी बक्सो को कोल रहे थे और उसमें से राईफल, पिसेतौल, रिवॉल्वर, गोलियां और काला साबुन जैसी कोई चीज निकाल कर बाहर रख रहे थे। टाईगर उन सभी को गिनकर अपनी डायरी में नोट कर रहा था।
दाऊद फणसे के इस इकबालिया बयान को टाडा अदालत ने सही माना। अदालत उसकी भूमिका को देखते हुए उसे फांसीं दिये जाने लायक मान रही थी, लेकिन उसकी उम्र के मद्देनजर उसे सिर्फ उम्रकैद की सजा सुनाई गई। बहरहाल मुंबई की विशेष टाडा अदालत ने अपने आदेश में अंडरवर्लड डॉन दाउद इब्राहिम की भूमिका का खुलासा तो किया ही है, ये भी बात सामने आई है कि दाऊद का भाई अनीस इब्राहिम भी इस साजिश का हिस्सा था। अनीस इब्राहिम का जिक्र साजिश के लिये होने वाली मीटिंगों और संजय दत्त के मामले में आता है। सबूत अनीस इब्राहिम की बॉलीवुड में पैठ का भी खुलासा करते हैं।
दाऊद इब्राहिम के साथ ही उसका भाई अनीस भी था 12 मार्च 1993 को मुंबई में तबाही मचाने का जिम्मेदार। अनीस इब्राहिम की साजिश में भूमिका के सबूत मिलते हैं अन्य आरोपियों के इकबालिया बयानों के जरिये जिन्हें अदालत ने सही माना है। खासकर यहां इजाज पठान नाम के आरोपी का बयान काबिल-ए-गौर है। उसने अपने बयान में बताया -मुंबई में दंगों के बाद दुबई में मुस्तफा दोसा के घर एक मीटिंग बुलाई गई। मीटिंग में दाऊद इब्राहिम, अनीस इब्राहिम, मुस्तफा मजनू, यासीन कमजा, हैदर, सलीम तलवार, टाइगर मेमन और याकूब मौजूद थे। मीटिंग में मुंबई दंगों पर चर्चो हो रही थी। ये तय हुआ कि दंगों का बदला लेने के लिये कुछ किया जायेगा । आगे की कार्रवाई अगली मीटिंग में तय होगी, जिसका वक्त सभी को फोन पर इत्तला किया जायेगा। टाईगर मेमन भारत में हथियार भेजने की बात कर रहा था।"
संजय दत्त के मामले में भी अनीस इब्राहिम की भूमिका की बात सामने आती है। लेकिन टाडा अदालत ने अपने आदेश में कहा कि संजय दत्त ने हथियार अनीस इब्राहिम से नहीं बल्कि फिल्म जगत से जुडे हनीफ और समीर से लिये थे।.
समीर हिंगोरा और हनीफ कडावाला मैगनम वीडियो कंपनी के पार्टनर थे और 80 के दशक से ही दोनो की अनीस इब्राहिम से जान पहचान थी। समीर ने अपने बयान में बताया कि फिल्म के काम के सिलसिले में वो अक्स दुबई जाते रहता था, जहां उसकी मुलाकात दाऊद और अनीस से होती थी। उसने कई सारी फिल्मों के वीडियो राईट्स खाडी देशों के लिये किंग्स वीडियो को बेचे थे, जिसका मालिक अनीस इब्राहिम था। अल मंसूर वीडियो कंपनी में भी उसकी हिस्सेदारी है। हालांकि टाडा कोर्ट ने संजय दत्त पर ये टाडा ये कहकर हटा दिया कि उसने अनीस इब्राहिम से हथियार नहीं लिये लेकिन अदालत ने ये माना कि समीर हिंगोरा, अनीस इब्राहिंम के लिये काम करता था और उसी के कहने पर वो संजय दत्त के घर हथियार और एके-56 राईफलों को पहुंचाने अबू सलेंम के साथ गया। अनीस भी बमकांड के माले में भगोडा आरोपी घोषित किया गया है और गिरफ्त में आने पर उसक खिलाफ भी टाडा के तहत मुकदमा चलाया जायेगा।

Wednesday 24 October, 2007

बम विस्फोट में संजय दत्त का कोई हाथ नहीं

फिल्मस्टार संजय दत्त ने अपने परिवार की हिफाजत के लिये एके-56 राईफल ली थी।दत्त के अंडरवर्लड डॉन दाऊद इब्राहिम के भाई अनीस से रिश्ते तो थे लेकिन बमकांड की साजिश से उनका कोई लेना देना नहीं था। संजय दत्त को टाडा के तहत दोषी न ठहराये जाने के ये कारण गिनाये हैं टाडा जज पीडी कोदे ने अपने आदेश में। उन्हें अदालत ने सिर्फ आर्मस एक्ट के तहत 6 साल की सजा सुनाई है। इन कागज के पन्नों में संजय दत्त का भूतकाल भी है और उनका भविष्य भी कैद है। वैसै तो टाडा अदालत ने पूरे मुकदमें का आदेश 4340 पन्नो में लिखा है, लेकिन उनमें से ये 88 पन्ने संजय दत्त और उनके साथी आरोपियों से सरोकार रखते हैं। संजय दत्त पर से जब इस अदालत ने टाडा हटाया था तो सभी चौंके थे। इस आदेश में अदालत ने साफ किया कि दत्त पर से टाडा क्यो हटाया गया।
सीबीआई ने संजय दत्त को टाडा के तहत आरोपी बनाया था। सीबीआई का आरोप था कि दत्त भी 12 मार्च 1993 को हुए मुंबई बमकांड की साजिश का हिस्सा थे। उन्होने अंडरवर्लड डॉन अनीस इब्राहिम की ओर से भेजे गये हथियार अपने पास रखे। सीबीआई के मुताबिक ये हथियार उस जखीरे का हिस्सा थे जो दाऊद इब्राहिम ने बमकांड की साजिश को अंजाम देने के लिये भारत भिजवाये थे। पर सबूतो, इकबालिया बयानों और दूसरी गवाहियों का हवाला देकर टाडा जज पीडी कोदे ने साफ किया है कि दत्त पर टाडा लगाना गलत था और वे सिर्फ आर्मस एक्ट के तहत ही गुनहगार हैं।
दत्त परिवार को खतरा- संजय दत्त के अपने इकबालिया बयान से ये साफ होता है कि उन्होने एके-56 राईफल इसलिये रखी क्योंकि उन्हें अपने और अपने परिवार के लिये खतरा महसूस हो रहा था। वे खासकर अपने पिता सुनील दत्त की सुरक्षा के प्रति चिंतित थे, जिन्होने सांप्रदायिक दंगों के दौरान कुछ लोगों से दुश्मनी कर ली थी और जिनपर जोगेश्नरी में एक बार हमला भी हो चुका था। दत्त के इकबालिया बयान में कही गई बातों का दूसरे सबूत भी समर्थन करते हैं।
दत्त बमकांड की साजिश में नहीं- हालांकि ये बात खुद दत्त के अपने इकबालिया बयान में सामने आती है कि उनके और दाऊद इब्राहिम और अनीस के बीच किसी तरह के रिश्ते थे और दुबई में यलगार फिल्म की शूटिंग के दौरान वे उनसे मिले थे, लेकिन ऐसा कोई सबूत नहीं सामने आया है कि इस रिश्ते का इस्तेमाल बमकांड की साजिश को अंजाम देने के लिये किया गया। ये बात भी काबिल ए गौर है कि 16 जनवरी 1993 को जब संजय दत्त ने हथियार लिये उस वक्त तक शेखाडी में न तो हथियार उतरे थे और न ही बमकांड की पूरी साजिश तैयार हुई थी। टाईगर मेमन ने 5 मार्च 1993 के बाद ही साजिश का खांका जाहिर किया था। इन सबूतों से ये साबित होता है कि संजय दत्त टाडा के तहत साजिश में शामिल होने के गुनहगार नहीं हैं।
हथियार अनीस से नहीं मिले- सबूतों से ये तो पता चलता है कि संजय दत्त और अंडरवर्लड डॉन अनीस इब्राहिम के बीच रिश्ते थे, लेकिन हथियार भी अनीस से मिले हैं ये बात साबित नहीं होती। अपने परिवार को खतरे का जिक्र दत्त ने फिल्म इडस्ट्री से जुडे 2 शख्स समीर हिंगोरा और हनीफ कडावाल से किया था। इन्ही के बार बार कहने पर दत्त हथियार लेने को राजी हुए। ये हथियार इन्ही ने अबू सलेम के साथ मिलकर दत्त तक पहुंचाये।
हथियार का इस्तेमाल आतंकवादी वारदात के लिये नहीं- सीबीआई का आरोप है कि संजय दत्त ने हथियार ऱखकर टाडा की धारा 5 का उल्लंघन किया है जो कि नोटिफाईड इलाके में हथियार रखने को गैरकानूनी जाहिर करती है, पर जज टाडा जज पी डी कोदे के मुताबिक ये धारा तब ही लागू होती है जब हथियार का इस्तेमाल आतंकवादी वारदात के लिये किया जाने की आशंका हो। संजय दत्त के मामले में ऐसा कोई सबूत नहीं मिला है कि एके 56 राईफल उन्होने किसी आतंकी वारदात के लिये ऱखी थी। इसलिये टाडा की धारा 5 के तहत भी वे दोषी नहीं हैं।
एके 56 राईफल साजिश का हिस्सा नहीं- सीबीआई ये साबित करने में नाकामियाब रही है कि संजय दत्त ने जो एके-56 राईफल अपने पास ऱखी वो हथियारों के उस जखीरे का हिस्सा थी जो दाऊद इब्राहिम और उसके साथियों ने मुंबई बमकांड की साजिश के लिये भारत भिजवाये थे। इसलिये संजय दत्त टाडा की धारा 3 (3) के तहत भी दोषी नहीं हैं।
हथियार मांगे थे, एके-56 नहीं- संजय के अपने इकबालिया बयान से पता चलता है कि उन्होने परिवार की सुरक्षा के लिये हथियार लिया था, लेकिन ये हथियार एके-56 है ये उन्हे तब ही पता चला जब उन्हे बताया गया। उन्होने एके 56 राईफल की खासतौर पर मांग नहीं की थी। साथ ही उन्होने न तो हथगोले मांगे थे और न ही उन्हें अपने पास ऱखे, जैसा कि उनपर आरोप था।
तमाम सबूतों का ब्यौरा देते हुए अदालत ने दत्त को टाडा से तो बरी कर दिया लेकिन गैरकानूनी तरीके से हथियार रखने के आरोप में 6 साल जेल की सजा सुना दी। ये सजा वे काटेंगे या नहीं ये तय करेगा सुप्रीम कोर्ट जहां टाडा कोर्ट के इस आदेश को दत्त के वकील चुनौती देंगे।फिलहाल वे पूणे के यरवदा जेल में बंद हैं।

दाऊद ही मुख्य आरोपी है मुंबई विस्फोट 93 का - टाडा कोर्ट

जीतेंद्र दीक्षित -
मुंबई बमकांड का मुकदमा चलाने वाली विशेष टाडा अदालत ने अपने फैसले में अंडरवर्लड डॉन दाऊद इब्राहिम को प्रमुख आरोपी पाया है। इस फैसले में कई ऐसे सबूतों और गवाहों का ब्यौरा है, जो ये खुलासा करते हैं कि दाऊद ने किस तरह से उसी मुंबई शहर को खून से सराबोर कर दिया, जहां वो पला बढा था। भारत में हुए सबसे बडे आतंकवादी हमले का जिम्मेदार पाये जाने के बावजूद दाऊद अब भी कानून की गिरफ्त से बाहर है।
दाऊद इब्राहिम कासकर का भारत का एक कुख्यात गुनहगार तो है ही, उसका नाम आज दुनिया के मोस्ट वांटेड आतंकवादियों की लिस्ट में शामिल है। उसपर ये ठप्पा लगा है 12 मार्च 1993 को मुंबई में हुए सिलसिलेवार बम धमाकों में उसकी भूमिका की वजह से। उस काली तारीख की साजिश में दाऊद का कितना हाथ था, ये दर्ज है इस विशेष टाडा अदालत के इस आदेश में, जिसकी कॉपियां अब आरोपियों को सौंपीं जा रहीं हैं
फैसले के पन्नों के पलटने के साथ ही दाऊद की काली करतूतों का ब्यौरा भी शुरू हो जाता है। टाडा अदालत ने अपने फैसले में पाया कि दाऊद इब्राहिम ने अपने अन्य साथियों के साथ मिलकर भारत में आतंकवादी वारदात की आपराधिक साजिश रची, ताकि लोगों में दहशत पैदा हो, उनमे अलगाव हो, सांप्रदायिकता पनपने से शांति भंग हो और सरकारी तंत्र चरमरा जाये। ये साजिश दिसंबर 1992 से लेकर अप्रैल 1993 के बीच रची और अमल में लाई गई। साजिश को अंजाम देने के लिये 12 मार्च 1993 के दिन 13 बम विस्फोट कराये गये, जिनमें 257 लोगों की मौत हो गई, 713 लोग घायल हो गये और 27 करोड रूपये की संपत्ति का नुकसान हुआ। दाऊद की पूरी साजिश में भूमिका का खुलासा होता है 19 जनवरी 1993 को दुबई में हुई एक मीटिंग से। ये मीटिंग हुई थी दाऊद इब्राहिम, टाईगर मेमन और दाऊद फणसे उर्फ टकले के बीच। दाऊद टकला, टाईगर मेमन के लिये चांदी स्मगल करवाने का काम देखता था। पर चूंकि इस बार स्मगलिंग चांदी के बजाय बारूद और हथियारों की करवानी थी इसलिये टाईगर ने टकले को दाऊद इब्राहिम से मिलवाना जरूरी समझा।)
-19 जनवरी की रात दाऊद टकला एयर इंडिया के विमान से दुबई पहुंचा। उसके वीसा और टिकट का इंतजाम टाईगर मेमन ने कराया था। एयरपोर्ट पर टाईगर ही उसे रिसीव करने आया। टाईगर उसे दुबई के होटल दिल्ली दरबार ले गया और एक कमरे में उसे ठहराया।
- इसके तीसरे दिन टाईगर शाम को 7-7.30 के करीब होटल आया और दाऊद टकला को अपने साथ चलने के लिये कहा। वो उसे एक टैक्सी में दाऊद इब्राहिम के बंगले पर ले गया। टकले को बाहरी कमरे में रूकने को कहकर वो बंगले के अंदरूनी कमरे में चला गया।
- कुछ देर बाद टाईगर, दाऊद इब्राहिम के साथ टकला के पास आया। चूंकि टकले ने अखबारों में दाऊद इब्राहिम की तस्वीरें देखीं थीं इसलिये वो तुरंत उसे पहचान गया।
- इस मीटिंग में तीनों के बीच कुछ ये बातचीत हुई-
दाऊद इब्राहिम (टकले से)- तुम किसके लिये काम करते हो।
टकला- जी ..टाईगर भाई के लिये।
दाऊद इब्राहिम- क्या तुम मेरे लिये काम करोगे
टकला- काम चांदी के कितने इंगोट्स (बिस्किट) का हे
दाऊद इब्राहिम- चांदी का काम अभी बंद कर दिया है। केमिकल, बारूद और हथियार भेजना है।
(दांत पीसते हुए) अपनी बाबरी मसजिद शहीद हो गई है। उसका बदला लेना है।
(टाईगर से पूछते हुए) काम में कितना खर्चा आयेगा।
टाईगर मेमन- 9 से 10 पेटी (यानी 9-10 लाख रूपये)
दाऊद इब्राहिम (टकले से)- काम कराने के लिये तुम्हारे पास क्या इंतजाम है
टकला- जी भाई मच्छीमार ट्रालरों में अपने लोग हैं।
दाऊद इब्राहिम- ठीक है। मैं एक स्पीड बोट भेजूगा। तुम ट्रालरों का इंतजाम कर देना। खर्चे की बात टाईगर से कर लो।

इस बातचीत के बाद तीनों ने चाय पी। दाऊद अपनी मर्सीडीज कार से टाईगर के साथ टकले को दिल्ली दरबार होटल छोडने आया। अगले दिन टाईगर, टकले को दुबई हवाई अड्डे पर छोडने आया और 50 दिरहम उसके हाथ में थमाते हुए कहा कि दाऊद भाई की कही बातों का ध्यान रखे। टाडा अदालत में ये बात साबित हो गई कि टकले ने दाऊद इब्राहिम के निर्देशों पर अमल किया और मुंबई के करीब शेखडी के समुद्र तट पर आरडीएक्स और हथियारों को उतरवाने में मदद की। दाऊद टकले की बढी हुई उम्र को देखते हुए अदालत ने उसे फांसीं के बजाय उम्रकैद की सजा दी।ये तो थी मुंबई बमकांड में दाऊद की भूमिका की एक मिसाल। मुकदमें के दौरान अदालत के सामने कई और भी सबूत सामने आये, जो इस साजिश में दाऊद इब्राहिम और उसके गुर्गों की भूमिका पर से पर्दा उठाते हैं। बमकांड के 2 आरोपियों सलीम कुत्ता और इजाज पठान के इकबालिया बयानों को अदालत ने सच माना है।इन दोनो आरोपियों ने दुबई में साजिश के लिये होनेवाली मीटिंगों का ब्यौरा दिया है।)

सलीम मीरां शेख उर्फ सलीम कुत्ता के बयान के मुताबिक -
मैं जब जनवरी 1993 के आखिरी हफ्ते में दुबई में था तो एक दिन मुस्तफा मजनू मुझे जुमैरा इलाके में दाऊद इब्राहिम के घर व्हाईट हाउस ले गया। वहां मैने दाऊद, छोटा शकील, सलीम तलवार, फिरोज, इजाज पठान, हाजी अहमद को आपस में बात करते देखा। वे लोग भारत और हिंदूओं के खिलाफ, बाबरी मसजिद और मुंबई दंगों के बारे में बात कर रहे थे। मैं वहां करीब घंटे भर तक था।
दाऊद ने वहां भाषण दिया और कहा कि मुसलिमों ने हिंदुओं के हाथो काफी जुल्म सहे हैं क्योंकि दंगों में हिंदुओं के साथ पुलिस मिली हुई थी। मुसलिम महिलाओं को बेइज्जत किया गया। हमें बदला लेने के लिये तैयार रहना चाहिये। हिंदुओं को सबक सिखाने के लिये वो सभी को हथियारों की ट्रेनिग लेने के लिये पाकिस्तान भेजेगा ताकि हिंदुओं, बडे नेताओं और आला पुलिस अफसरों की हत्या की जा सके।
इसके बाद दाऊद ने मुस्तफा मजनू को सभी का पासपोर्ट लेने के लिये कहा ताकि उन्हें पाकिस्तान भेजने का इंतजाम किया जा सके, लेकिन मैने, फिरोज और कय्यूम ने ट्रेनिंग पर जाने से मना कर दिया।
दाऊद के साथ हुई इस मीटिंग के 2-3 दिन बाद आरिफ लंबू, सय्यद कुरेशी, यूसूफ बाटला, अबू बकर और शोएब बाबा ट्रेनिंग लेने के लिये पाकिस्तान रवाना हो गये। मैने उन्हे विदा करने दुबई एयरपोर्ट गया था।

इस मीटिंग से पहले दुबई में एक और मीटिंग हुई थी, जिसका ब्यौरा इजाज पठान नाम के आरोपी ने अपने इकबालिया बयान में दिया। पठान के मुताबिक – मुंबई में दंगों के बाद दुबई में मुस्तफा दोसा के घर एक मीटिंग बुलाई गई। मीटिंग में दाऊद इब्राहिम, अनीस इब्राहिम, मुस्तफा मजनू, यासीन कमजा, हैदर, सलीम तलवार, टाइगर मेमन और याकूब मौजूद थे। मीटिंग में मुंबई दंगों पर चर्चो हो रही थी। ये तय हुआ कि दंगों का बदला लेने के लिये कुछ किया जायेगा । आगे की कार्रवाई अगली मीटिंग में तय होगी, जिसका वक्त सभी को फोन पर इत्तला किया जायेगा। टाईगर मेमन भारत में हथियार भेजने की बात कर रहा था।
इन बयानो को टाडा अदालत ने सबूत माना है और अगर कल को दाऊद की गिरफ्त में आने के बाद उसपर मुकदमा चलता है तो इनका इस्तेमाल उसके खिलाफ किया जा सकता है। अदालत ने पाया कि ये बयान दूसरे गवाहों के बयान और सबूतों से मेल खाते हैं।
इन सबूतों से मुंबई बमकांड में पाकिस्तान की भूमिका भी सामने आती है। उसी पाकिस्तान की जिसने दाऊद इब्राहिम का इस्तेमाल कर भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई पर हमला किया और जिसपर आज भी दुनिया के एक बेहद खतरनाक इंसान को शह देने का आरोप है।

Friday 19 October, 2007

अपने हीं आंतकवाद की चपेट में फंसा पाकिस्तान, धमाके में 130 से अधिक की मौत

पाकिस्तान की पूर्व प्रधानमंत्री बेनज़ीर भुट्टो के काफ़िले पर हुए आत्मघाती हमले में 130 से अधिक लोगों की मौत हो गई और 600 से अधिक लोग घायल हैं ।इस घटना की भारत समेत विश्व के सभी देशों ने निंदा की। लगातार कड़ी आलोचना हो रही है। सभी भारतवासी इस घटना से दुखी हैं। भारत सरकार ने इस घटना की कड़ी निंदा की है। यह हमला गुरुवार की रात 12 बजे के बाद हुई।इस हमले में बेनज़ीर भुट्टो बच गईं । बेनजीर 8 साल बाद पाकिस्तान लौटी. हमले के बाद किसने क्या कहा यह जान ले और फिर यह जानेगें कि आप यदि पड़ौसी का घर जलाओगे तो आपके घर में अपने आप हीं आग लग जायेगी।
परवेज मुशर्रफ(राष्ट्रपति पाकिस्तान) – लोकतंत्र के खिलाफ साजिश, दोषियों को छोड़ा नहीं जायेगा।
आसिफ ज़रदारी(बेनज़ीर के पति) – इस विस्फोट के लिये सरकार में शामिल कुछ लोग जिम्मेदार हैं। इसके पीछे लोकतंत्र के दुश्मन नहीं चाहते की लोकतंत्र बहाल हो।
बान की मून(संयुक्त राष्ट्र के महासचिव) – घटना की निंदा की और मृतक परिवारजनों के प्रति संवेदना प्रकट की।
अमेरिका – यह एक आंतकवादी हमला है लोकतंत्र को रोका नहीं जा सकता।
चीन – पाकिस्तान में स्थिरता की जरुरत है।
ब्रिटेन -पाकिस्तान में शांति और लोकतंत्र की बहाली के लिए जो काम करना चाहते हैं. उन सभी लोगों के साथ ब्रिटेन मिलकर काम करेगी।इनके अलावा विश्व के कई और देशों ने बेनजीर पर हुये हमले की निंदा की।
बहरहाल, पाकिस्तान पिछले 20 सालों से भारत और अफगानिस्तान के खिलाफ लगातार काम करता आ रहा है। भारत में जगह जगह विस्फोट करवा कर लोगों की जान लेने वाले आंतकियों को पाकिस्तान ने ही तैयार किया। एक दो नहीं दर्जनों कैंप बनवाये पाकिस्तान के अलग अलग स्थानों पर जहां आंतकियों को प्रशिक्षण दिया गया। इतना हीं नहीं पाकिस्तान ने अफगानिस्तान में भी तालीबान को बढावा देकर वहां भारी तबाही मचवायी। पड़ौस में आग लगाने के बाद अब पाकिस्तान खुद परेशान है। पश्चिम इलाके में पाकिस्तानी सैनिको पर भी वहां के आंतकी भारी पड़ रहे हैं। समय समय पर यह खबर आती है कि 10 सैनिक मारे गये तो कभी 50 मारे गये। अब तो पाकिस्तान के शहरी इलामें भी सिलसिलेवार हमले होने लगे हैं। वहां न ते आवाम सुरक्षित है और न हीं नेता। जैसा बोओगे वैसा ही काटोगे। बहरहाल हम यही चाहते हैं कि पाकिस्तान में शांति बहाल हो। दुनियां के सारे मुल्क में शांति हो लेकिन पाकिस्तान और अमेरिका की सरकार ऐसा होने देगी ?

Sunday 14 October, 2007

थियेटर पर आंतकवादी हमला 6 की मौत

पंजाब के लुधियाना स्थित श्रृंगार थियेटर में जबरदस्त धमाका हुआ है जिसमें मरने वालों की संख्या 5 से बढकर 6 हो गई और कई लोग घायल हैं। मरने वालों में 10 साल का एक बच्चा भी है। मौके पर पुलिस पंहुच गई है और जांच पड़ताल में लग गई है। थियेटर में लोग आठ बजे का फिल्म शॉ देखने गये थे। बम विस्फोट रात आठ बजकर चालीस मिनट पर हुई। लोग फिल्म देख रहे थे उसी समय धमाका हुआ।थियेटर में लोग फिल्म ‘जनम जनम का साथ’ देख रहे थे लेकिन धमाके ने लोगों के भ्रम को तोड दिया और कुछ लोगों को हमलोगो से सदा के लिये दूर कर दिया। धमाके मे किस बारुद का इस्तेमाल किया गया है इस बात की पुष्टि नहीं हो पाई है। अजमेर स्थित ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह में हुये धमाके की गूंज अभी थमी भी नहीं थी कि लुधियाना में धमाका हो गया। इस धमाके के पीछे कौन लोग हैं कुछ भी नहीं कहा जा सकता सिर्फ कयास ही लगाये जा सकते हैं। लेकिन इतना तय है कि इस धमाके के पीछे दहशतगर्दों का ही काम है जो त्योहार के मौके पर इस तरह का धमाका करवा रहा है। यह भी बताया जा रहा है कि यह एक आंतकवादी हमला है।बहरहाल, मौके पर एम्बुलेंस पहुंच गई है और लोंगों को स्थानीय हॉस्पीटल में दाखिल करा दिया गया है।थियेटर खाली करा दिये गये हैं। पुलिस दस्ता थियेटर को अपने कब्जे में लेने के बाद जांच पड़ताल शुरु कर दी है। पंजाब और दिल्ली में हाई अलर्ट घोषित कर दिया गया है।

लुधियाना में धमाका 5 की मौत

अभी अभी खबर मिली है कि पंजाब के लुधियाना स्थित श्रृंगार थियेटर में जबरदस्त धमाका हुआ है जिसमें 5 लोगों की मौत की खबर है और दर्जनों लोग घायल हैं। मरने वालों में 10 साल का एक बच्चा भी है। मौके पर पुलिस पंहुच गई है और जांच पड़ताल में लग गई है। थियेटर में लोग फिल्म देख रहे थे उसी समय धमाका हुआ। धमाके मे किसका इस्तेमाल किया गया है इस बात की पुष्टि नहीं हो पाई है। अजमेर स्थित ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह में हुये धमाके की गूंज अभी थमी भी नहीं थी कि लुधियाना में धमाका हो गया। इस धमाके के पीछे कौन लोग हैं कुछ भी नहीं कहा जा सकता सिर्फ कयास ही लगाये जा सकते हैं। मौके पर एम्बुलेंस पहुंच गई है और लोंगों को स्थानीय होस्पीटल में दाखिल करा दिया गया है।थियेटर खाली कराये जा रहें है। चारो ओर अफरा तफरी का माहोल है।

अदालतें अशोभनीय टिप्पणियां न करें– सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालत से कहा है कि वे गवाहों या अन्य लोगों के खिलाफ अशोभनीय टिप्पणी न करें। यदि अदालत को यह लगे कि गवाह या अन्य लोगों का व्यावहार उचित नहीं है फिर भी अदालत अशोभनीय टिप्पणी न करे। न्यायमूर्ति सी के ठक्कर और सतशिवम की पीठ ने कहा कि न्यायिक टिप्पणी सटीक, शालीन और उदार होना चाहिये। दहेज हत्या मामले में एक गवाह के संबंध में पंजाब की एक अदालत द्वारा की गई टिप्पणी के संदंर्भ में सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश दिया।

Sunday 7 October, 2007

सुप्रीम कोर्ट भी कुछ नहीं कर पाई

चाहे कोई व्यक्ति हो या संस्था यदि वो लक्षमण रेखा को पार करने कि कोशिश करता है तो उसका खामियजा देर सबेर भुगतना ही पड़ता है। सबसे ताज उदाहरण है सुप्रीम कोर्ट का। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि तमिलनाडु में बंद का आयोजन डीएमके नहीं कर सकती है। लेकिन बंद को भूख हड़ताल का नाम देकर डीएमके ने जबरदस्त बंद का आयोजन किया। राज्य में लगभग सारी गाड़ियां जहां की तहां की खड़ी थी। सारी दुकाने बंद थी। यह खबर मिलते ही सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुये कहा कि यदि सुप्रीम कोर्ट की बात राज्य सरकार नहीं मानती है इसका मतलब वहां कानून व्यवस्था ठीक नहीं है ऐसे में वहां केन्द्र सरकार राष्ट्रपति शासन लागू कर सकती है। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। मिलाजुला कर सुप्रीम कोर्ट को हाथ पे हाथ रख कर बैठना पड़ा। देश ने देखा कि सुप्रीम कोर्ट भी यदि भावना में आकर या प्रशासनिक लहजे में कोई फैसला दे देती है तो जरुरी नहीं कि कार्यपालिका उसकी बात माने हीं। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद तमिलनाडू बंद हुआ। राष्ट्रपति शासन लागू करने के मुद्दे पर केन्द्र सरकार के मंत्रियों ने सुप्रीम कोर्ट की सहाल को साफ ठुकरा दिया। इतना हीं नहीं वामपंथी दलों ने तो यहां तक कह दिया कि तमिलनाडु में बंदी या हड़ताल होगा या नहीं ये सब कुछ सुप्रीम कोर्ट के दायरे में आता ही नहीं है। यदि बंद को दौरान कोई तोड़ फोड़ होती तो एक बात समझ में आती। बातचीत में कई लोगों ने सुप्रीम कोर्ट के प्रति आस्था जताते हुये कहा कि सुप्रीम कोर्ट हमेशा न्याय करती आई है लेकिन यहां चुक हो गई। लोग यह भी कह रहें कि गुजरात में लगातार महीनों तक दंगे होते रहे तो सुप्रीम कोर्ट ने उस समय राष्ट्रपति शासन की सलाह केन्द्र को क्यों नहीं दी। राज्य में चुनी हुई सरकार को बर्खास्त करने का फैसला बहुत ही मुश्किल घड़ियों में लिया जाता है। यहां पर न्यापलिका और कार्यपालिका दोनों को ही एक दुसरे की भावनाओं का ख्याल रखना चाहिये । कार्यपालिका और विधायिका को बेवजह न्यायपालिका के क्षेत्र में हस्तक्षेप नहीं करनी चाहिये उसी प्रकार न्यायपालिका को भी विधायिका और कार्यपालिका के क्षेत्र में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिये।

Wednesday 3 October, 2007

डीएम हत्याकांड मामले में पूर्व सांसद को फांसी

अरुण नारायण
पटना के सत्र न्यायालय ने गोपालगंज के ज़िलाधिकारी जी कृष्णैया की हत्या के मामले में पूर्व सांसद आनंद मोहन, अखलाख अहमद और अरुण कुमार को फाँसी की सज़ा सुनाई है. इनके अलावा अदालत ने विधायक मुन्ना शुक्ला, आनंद मोहन की पत्नी लवली आनंद, हरेंद्र कुमार और शशि शेखर को उम्र क़ैद की सज़ा सुनाई है। इन लोगों पर भीड़ को उकसाने का आरोप है। भीड़ ने जिलाधिकारी कृष्णैया की पीट पीट कर हत्या कर दी थी। जब इन नेताओं को सजा सुनाई जा रही थी उस समय अदालत के बाहर इनके समर्थकों का भारी जमावडा था। हो हंगामे की आंशका थी लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। अदालत के फैसले पर कुछ लोगों का कहना था कि इतनी कड़ी सजा नहीं दी जानी चाहिये थी। कुछ लोगों का कहना था कि अदालत ने एकदम सही फैसला सुनाया है। एक ने कहा कि आप इसी से अनुमान लगा सकते है कि जब एक डीएम की हत्या हो सकती है तो आमलोगों की गिनती ही नहीं है। अदालत के बाहर मौजूद लोगों में से एक व्यवसायी ने कहा कि पटना के सत्र न्यायाधीश रामश्रेष्ठ राय ने सटीक कदम उठाया। यह एक ऐसा मोड़ है जहां से अपऱाध कमी आयेगी। लोग अपराध करने से पहले 10 बार सोचेगें। इसका सबसे बडा उदाहरण है फैसले सुनाने के बाद दोषी करार दिये गये लोगों के समर्थकों का शांत रहना। ये वही लोग है जो एस पी जैसे अधिकारियों पर भी सरे आम हाथ छोड़ दिया करते है। बहरहाल,विधायक मुन्ना शुक्ला के वकील सुनील कुमार ने कहा है कि जल्दी ही इस फ़ैसले के खिलाफ हाई कोर्ट में अपील की जाएगी। जिलाधिकारी कृष्णैया की हत्या 4 दिसंबर 1994 को मुज़फ्फ़रपुर ज़िले के खबरा गाँव के पास उग्र भीड़ ने कर दी थी.ये लोग बाहुबली और स्थानीय नेता छोटन शुक्ला की हत्या के विरोध में जुलूस निकाल रहे थे.मुन्ना शुक्ला छोटन शुक्ला का भाई है।

Monday 1 October, 2007

पूर्व सांसद और विधायक जिलाधिकारी हत्याकांड में दोषी

बिहार - बाहुबली और पूर्व सांसद आंनद मोहन, उनकी पत्नी लवली आंनद, विधायक विजय कुमार शुक्ला उर्फ मुन्ना शुक्ला, पूर्व विधायक अखलाक अहमद , शशि शेखर और अरुण कुमार सिन्हा को गोपालगंज की स्थानीय अदालत ने गोपालगंज के जिलाधिकारी जी कृष्णैया की हत्या के मामले में दोषी करार दिया है। इनलोगों पर जिलाधिकारी कृष्णैया को जान से मारने के लिये भीड़ को उकसाने का आरोप है। यह हत्या 5 दिसंबर 1994 को उस समय हुई थी जब छोटन शुक्ला की शव यात्रा के दौरान भीड़ जिलाधिकारी कृष्णैया की पीट पीट कर हत्या कर दी थी। सजा 3 अक्टूबर को सुनाई जायेगी। आंनद मोहन उस समय बिहार पीपुल्स पार्टी के नेता थे अब यह पार्टी अस्तिव में नहीं है। मुन्ना शुक्ला जनता दल यू से विधायक हैं।