आमतौर पर व्यक्तिगत तौर पर मैं अपना यात्रा वृतांत नहीं लिखता लेकिन इस बार लिखने को मजबूर हूं। छोटा सा हीं सही पर लिख रहा हूं क्योंकि करोड़ो आबादी से जुड़ा मसला है।
मैं शनिवार को तपोवन एक्सप्रेस से नाशिक से मुंबई आ रहा था। ट्रेन में भीड़ थी। मैंने पहले हीं सीट बुक करा लिया था इसलिये मुझे कोई खास दिक्कत नहीं हुई। नाशिक से ही एक महिला अपने दो बच्चों के साथ ट्रैन में चढी मुंबई आने के लिए। उक्त महिला की पुत्री 14 साल की होगी। बेटा 10 साल के आसपास। भीड़ के कारण यात्रा करने में लोगो को दिक्कते हो रही थी। ट्रेन खुलने के साथ हीं कुछ बदमाश किस्म के लड़कों का एक ग्रुप उक्त महिल और उसकी पुत्री के साथ जान बुझकर अपने शरीर से धक्का मार रहा था। और नाटक इस प्रकार से कर रहा था कि मानों भीड़ के दबाव के कारण ही महिला के साथ उसका शरीर उसकी ओर झूक रहा है। हरकते बढती जा रही थी।
ऐसे में मैंने अपना सीट उस महिला को दे दिया। फिर वे अपनी और अपनी बच्ची को किसी तरह गुंडे किस्म के लड़कों से बचा पायी। मैं खडे रहा। हमारी कोई बातचीत नहीं हुई। चार घंटे का सफर था। वे मेरी सीट मुझे देना चाहती थी पर हालात ऐसे नहीं थे कि वे मुझे सीट दे सके। बहरहार तीन घंटे की यात्रा के बाद हमलोग कल्याण स्टेशन पहुंचे। यहां पर काफी लोग उतरे। ट्रेन में जगह बन गई थी। मैं भी बैठ गया। मुझे दादर उतरना था। उक्त महिला को भी दादर उतरना था। हमारी बातचीत शुरु हुई। बातचीत के दौरान वे महिला जान गई कि मैं बिहार का रहने वाला हूं।
उन्होंने खुद राजनीतिक बातें शुरू करते हुए कहा कि मुझे और मेरी बेटी को परेशान करने वाले सभी मराठी थे। लेकिन मेरी मदद किसी मराठी ने नहीं की आपने की, जिसे राज ठाकरे भैया कह कर अपमानित करता है। मैं भी ठाकरे हूं । और शिव सेना को वोट करती आयी हूं लेकिन आज के बाद न तो राज ठाकरे की पार्टी को वोट दूंगी और न हीं शिव सेना को। किसी को वोट नहीं दूंगी। मैं सुनता रहा दादर आने वाला था। इस कथन पर मैं इतना ही कह पाया कि हर जगह और हर समाज में अच्छे और बुरे लोग रहते हैं। उनकी पुत्री ने मेरा इतना आभार प्रकट किया कि ये यादें याद के तौर पर मुझे लिखने को मजबूर कर दिया। जय हिन्द।
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6 comments:
इस दुनिया में लुच्चे किस्म के जितने भी लोग हैं उन का ना तो कोई दीन होता है ना ही मज़हब होता है.....इसलिये इन लुक्खे लोगों का काम ही यही होता है कि महिलाओं को कैसे तंग किया जाये। ये ट्रेनों में सिरफिरे लोग औरतों का जीना दूभर कर देते हैं। आपने बहुत अच्छा किया मानवता के नाते उस महिला एवं उस की बच्ची को सरंक्षण दिया।
आपको सादर प्रणाम,
इसको पढकर हम सभी को ऐसे असामाजिक तत्वों से बढावा न देते हुये इनसे निपटने की शपथ लेनी चाहिये ।
अच्छा लगा पढकर.. एक बिहारी होने के कारण सर गर्व से ऊंचा भी हो गया..
आपने बहुत ही अच्छा किया । इसके लिए आपको बधाई।
ये तो राज ठाकरे है जिन्हें ये समझने की जरुरत है।
असल बीमारी तो यही है. आपने एक नेक इरादे से यह यात्रा-वृत्तांत लिखा. लेकिन ठाकरे खानदान ने मुम्बई में 'भैया' जैसे पवित्र शब्द को गाली बना कर रख दिया है. वह भली महिलाकितनी कृतज्ञ थी लेकिन भैया शब्द उसने इसलिए इस्तेमाल कर लिया कि उसे भी यह महसूस नहीं हुआ कि यह अब एक अपमानजनक शब्द है. कितनी भयंकर बात है!!!!!!!
मुम्बई में एक चोर-उचक्का मराठी अमिताभ बच्चन तक को 'भैया' बोल कर अपने अहम् की तुष्टि कर लेता है.
ऐसे में राज ठाकरे उत्तर भारतीयों को मराठी संस्कृति अपनाने की बात किस मुंह से करते हैं? मतलब तुम हमें गाली दो और हम मराठी संस्कृति अपनाएं? तुम हमसे नफ़रत करो हम तुमसे मोहब्बत करें? दुनिया में ऐसा कहीं नहीं होता. मजबूरी का नाम महात्मा गांधी बन गया है बस.
डॉ प्रवीण जी, नीरज जी, प्रशांत जी, ममता जी और विजय शंकर जी आप सभी का प्रतिक्रिया देने के लिए धन्यवाद। ये सब कुछ राष्ट्र निर्माण को मजबूत करने की दिशा में बढता एक और कदम हैं।
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