जातीय आरोप-प्रत्यारोप से न्यायलय भी नहीं बच पाई । राजनीति और प्रशासनिक विभाग में जातीय आरोप-प्रत्यारोप का मामला बहुत सामान्य है। लेकिन न्यायलय जिसके प्रति देश की जनता की आस्था बनी हुई है यदि उसे चोट पहुंचता है तो यह देश के लिये अच्छा नहीं होगा।
इसलिये सुप्रीम कोर्ट ने मुंबई के अधिवक्ता रोहिन एन पांडया और पंकज कोटेचा के प्रति कड़ी नाराजगी व्यक्त की है। वकील पांडया और वकील कोटेचा ने एक जनहित याचिका दायर कर बॉम्बे हाई कोर्ट के मुख्य न्यायधीश के खिलाफ आरोप लगाय है कि मुख्य न्यायधीश मारवाड़ी हैं इसलिये वे मुंबई और अन्य स्थानों पर मारवाड़ी समाज से जुड़े न्यायधीशों की नियुक्ति कर रहे हैं। और किसी खास समुदाय के तरफदारी के पीछे हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार का दिमाग है जो कि मारवाड़ी है।
इस पर सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश जे बालाकृष्ण की अध्यक्षता वाली पीठ ने महाराष्ट्र सरकार को नोटिस जारी कर अधिवक्ता के खिलाफ कार्रवाई करने के लिये जवाब मांगा है। सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा है कि अधिवक्ता के खिलाफ क्यों नहीं कार्रवाई की जानी चाहिये। सालिसिटर जनरल ने कहा कि यह जनहित याचिक कंलकपूर्ण है। यह वक्त है न्याय पालिका को बचाने का।
Thursday, 10 July 2008
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